हे भगवान तूने क्यों ये आज का दिन दिखलाया जो दिन नहीं रात है , अंधेरोंकी बरसात हैं , जिनेकी ना आस है , और मौत की ना बात हैं , जान लेता तू मेरी तो एहसान मानता और पैदा ही ना करता जो
मुझे तो तेरे कदमोंको जिंदगीभर चूमता , दरअसल मैंने उसमे रब देखा हैं पर उसनेही मुँह फेर दिया , मुझे भलेही पेहेले कहां सुकून था की कितने दुखी लोग हैं इस दुनिया में , मैंने उनके दर्द को महसूस किया जिसके सामने मेरा कुछ बाकी दिलोंका दर्द कुछ भी मायने न रखता था , दरअसल मैं दुखियोंका दर्द मिटाता तो जी पाता सुकून से , पर तूने इक फरिश्तोंसी परी मेरे ख़्वाबों - खयालों में ही नहीं पर दिलो - दीमाग पर विराजित कर दी जिसकी हर बात मेरी अंतरात्मा की पुकार हो गयी और हमेशा बरकरार रहेगी , ये उम्रकी गलती न थी ना मेरी उलझनों भरी सोच पर थी वो ऐसी घड़ी जिससे रहा था हररोज , अब मेरी हालत तो उस वीरान जगहसी हो गयी जहा कभी बारिश की बुँदे ही ना गिरेगी , मेरी सोच गलत ना थी ना उसकी कोई गलती , वो तो अपने दर्द दिलमे रखकर मुझे खुश देखना चाहती है पर, वो ये नहीं जानती की उसके दिलके दर्द महसूस ही नहीं दर्द देते हैं मुझे , वो तो पाक दिलकी वो ग़ज़ल हैं जिसे भगवान तेरी दरबारमे सिंघासन पर स्थान हैं , मैं उससे दूर गया तो उससे नहीं रूठा हूँ बल्कि उसे खुश देखने के लिए उससे दूर जा रहा हूँ जो मेरी आत्मा के मौत के तरफ बढ़ाया कदम हैं ,
केहेते हैं वक़्त सब बीमारियों का इलाज हैं पर जब मेरा वक़्त ही थम चुका हैं तो मैं क्योँ झूँठी खुशीयोंकी तरफ जिंदगीके इस अंगार भरे पथ पर चलता जाऊ? वक्त आगे बढ़ेगा पर मेरा दिल दिनभरदिन तड़प तड़प मरेगा , ना मौत आएगी मुझको ना मैं जी पाउँगा , हे खुदा तूने मुझसे दूरियां करली और मैंने भी तेरी खुशीयोंकी खातिर इन काँटोंभरी राहोंको अपना लिया , स्वाती मेरे खुदा तू ना भी अगर मिलता कहीं तेरी यादोंमें ये दिल कोने में कही पड़ा रहता पर आज जो हो गया जो तेरी नजरोंसे हमेशा के लिए ना गिरता , तू इन अल्फाजोंको मत देख , मैं मेरा दर्द खुदसे ही बाटता पर मैं मेरा भी ना रहा , अगले जनम तेरी पनाहोंमे जिंदगी दे ना दे पर अपनी निगाहोंसे रुसवा न कर लेना कही मैं इस कदर न मर जाऊ की ये अल्फाज भी ना बयां कर पाउ , ये मेरा दीवानापन कुछ काम आये और मैं पागल ही सही तेरा वो कहनेका खिताब पाउ तो उसीके सहारें कुछ पल काट जायेँ , वो शायरी जो मैं लिखता था दिल मेरा जलाकर और तेरी हँसी पाकर उस मेरे जलते दिलोंकी आग पर मरहम लगाया करता था और ये सिलसिला मेरी अरमानोंके जनाजे के तरफ मेरा कदम था जो आज उस दवा को तलक तरस गया , दर्द तो हो रहा हैं , इलाज को भी मैं रोक रहा हूँ , जी भी नहीं पा रहा हूँ और मौत भी ना आ रही हैं ,
मेरे खुदा तू जिस दुनिया में जिए खुश रहे , तेरा हँसना हमें ना सुनाई देगा ना दिखाई पर दिलको महसूस हो इसकी शिनाख्त बस हो जाएँ , तुझसे जाकर दूर जी भी ना पाउँगा बस एक शरीर होगा आत्मा बाहर भटक रही होगी , शरीर चलेगा पर दिमागके थोड़ेसे सहारेसे पर तेरे दिलमे जगा मिलती अगर मेरे इस नादाँ दिल को तो यह थोड़ा संभल जाता , तुझे कसम हैं मेरी मेरे इन आँसूभरे दिल के अल्फ़ाजोंको न पढ़ कही तेरे मुझसे ज्यादा कोई खुश रखनेवाले की और बढ़ते तेरे कदमोंको जानेसे तेरे कदम ना लड़खडादे , पर काश कमसे कम मुझे वो जरिया बनादे जो तुझे लडख़ड़ानेसे रोकले ,
बिन तेरे बिन तेरे बिन तेरे कोई खलिश हैं खयालों में बिन तेरे तूने मुझसे २० अगस्त को सुन तो लिया पर उसमे मेरे दर्द की गूंज ना सुनाई दी
, तुझे मैं तड़पता न देखू मेरी यादोंमे इसलिए मैं खुद तेरी नजरोंमे गिर गया या ऐसा उस परवरदिगार ने मुझसे कर लिया काश इसका जवाब मेरी मौत भी न दे सके , हमने पूना जाते वक्त साथ सूना फटे इश्तेहार (poster ) निकला हीरो का वो गाना - मैं रंग शरबतोंका तू मीठे घाट का पानी , और इस शरबत को बेरंग कर गया मेरी खुद की वजहसे और मई खड़ा घाट पर फिरभी ऐसा बंधा जो तेरी बातोंकी प्यास पाने तरस गया , और उस रोज पेहेले जो हम सब्जी खरीदने गए तो तेरा सब्जीवालेसे कहा वो लफ्ज - धनिया कैसा दिया भैया ? काश आज वो मुझसे तू कहे की -मैंने दी जो तुझे यादें उनका क्या मोल हैं ? तो मैं केहे दू की वो तो अनमोल हैं
मुझे तो तेरे कदमोंको जिंदगीभर चूमता , दरअसल मैंने उसमे रब देखा हैं पर उसनेही मुँह फेर दिया , मुझे भलेही पेहेले कहां सुकून था की कितने दुखी लोग हैं इस दुनिया में , मैंने उनके दर्द को महसूस किया जिसके सामने मेरा कुछ बाकी दिलोंका दर्द कुछ भी मायने न रखता था , दरअसल मैं दुखियोंका दर्द मिटाता तो जी पाता सुकून से , पर तूने इक फरिश्तोंसी परी मेरे ख़्वाबों - खयालों में ही नहीं पर दिलो - दीमाग पर विराजित कर दी जिसकी हर बात मेरी अंतरात्मा की पुकार हो गयी और हमेशा बरकरार रहेगी , ये उम्रकी गलती न थी ना मेरी उलझनों भरी सोच पर थी वो ऐसी घड़ी जिससे रहा था हररोज , अब मेरी हालत तो उस वीरान जगहसी हो गयी जहा कभी बारिश की बुँदे ही ना गिरेगी , मेरी सोच गलत ना थी ना उसकी कोई गलती , वो तो अपने दर्द दिलमे रखकर मुझे खुश देखना चाहती है पर, वो ये नहीं जानती की उसके दिलके दर्द महसूस ही नहीं दर्द देते हैं मुझे , वो तो पाक दिलकी वो ग़ज़ल हैं जिसे भगवान तेरी दरबारमे सिंघासन पर स्थान हैं , मैं उससे दूर गया तो उससे नहीं रूठा हूँ बल्कि उसे खुश देखने के लिए उससे दूर जा रहा हूँ जो मेरी आत्मा के मौत के तरफ बढ़ाया कदम हैं ,
केहेते हैं वक़्त सब बीमारियों का इलाज हैं पर जब मेरा वक़्त ही थम चुका हैं तो मैं क्योँ झूँठी खुशीयोंकी तरफ जिंदगीके इस अंगार भरे पथ पर चलता जाऊ? वक्त आगे बढ़ेगा पर मेरा दिल दिनभरदिन तड़प तड़प मरेगा , ना मौत आएगी मुझको ना मैं जी पाउँगा , हे खुदा तूने मुझसे दूरियां करली और मैंने भी तेरी खुशीयोंकी खातिर इन काँटोंभरी राहोंको अपना लिया , स्वाती मेरे खुदा तू ना भी अगर मिलता कहीं तेरी यादोंमें ये दिल कोने में कही पड़ा रहता पर आज जो हो गया जो तेरी नजरोंसे हमेशा के लिए ना गिरता , तू इन अल्फाजोंको मत देख , मैं मेरा दर्द खुदसे ही बाटता पर मैं मेरा भी ना रहा , अगले जनम तेरी पनाहोंमे जिंदगी दे ना दे पर अपनी निगाहोंसे रुसवा न कर लेना कही मैं इस कदर न मर जाऊ की ये अल्फाज भी ना बयां कर पाउ , ये मेरा दीवानापन कुछ काम आये और मैं पागल ही सही तेरा वो कहनेका खिताब पाउ तो उसीके सहारें कुछ पल काट जायेँ , वो शायरी जो मैं लिखता था दिल मेरा जलाकर और तेरी हँसी पाकर उस मेरे जलते दिलोंकी आग पर मरहम लगाया करता था और ये सिलसिला मेरी अरमानोंके जनाजे के तरफ मेरा कदम था जो आज उस दवा को तलक तरस गया , दर्द तो हो रहा हैं , इलाज को भी मैं रोक रहा हूँ , जी भी नहीं पा रहा हूँ और मौत भी ना आ रही हैं ,
मेरे खुदा तू जिस दुनिया में जिए खुश रहे , तेरा हँसना हमें ना सुनाई देगा ना दिखाई पर दिलको महसूस हो इसकी शिनाख्त बस हो जाएँ , तुझसे जाकर दूर जी भी ना पाउँगा बस एक शरीर होगा आत्मा बाहर भटक रही होगी , शरीर चलेगा पर दिमागके थोड़ेसे सहारेसे पर तेरे दिलमे जगा मिलती अगर मेरे इस नादाँ दिल को तो यह थोड़ा संभल जाता , तुझे कसम हैं मेरी मेरे इन आँसूभरे दिल के अल्फ़ाजोंको न पढ़ कही तेरे मुझसे ज्यादा कोई खुश रखनेवाले की और बढ़ते तेरे कदमोंको जानेसे तेरे कदम ना लड़खडादे , पर काश कमसे कम मुझे वो जरिया बनादे जो तुझे लडख़ड़ानेसे रोकले ,
बिन तेरे बिन तेरे बिन तेरे कोई खलिश हैं खयालों में बिन तेरे तूने मुझसे २० अगस्त को सुन तो लिया पर उसमे मेरे दर्द की गूंज ना सुनाई दी
, तुझे मैं तड़पता न देखू मेरी यादोंमे इसलिए मैं खुद तेरी नजरोंमे गिर गया या ऐसा उस परवरदिगार ने मुझसे कर लिया काश इसका जवाब मेरी मौत भी न दे सके , हमने पूना जाते वक्त साथ सूना फटे इश्तेहार (poster ) निकला हीरो का वो गाना - मैं रंग शरबतोंका तू मीठे घाट का पानी , और इस शरबत को बेरंग कर गया मेरी खुद की वजहसे और मई खड़ा घाट पर फिरभी ऐसा बंधा जो तेरी बातोंकी प्यास पाने तरस गया , और उस रोज पेहेले जो हम सब्जी खरीदने गए तो तेरा सब्जीवालेसे कहा वो लफ्ज - धनिया कैसा दिया भैया ? काश आज वो मुझसे तू कहे की -मैंने दी जो तुझे यादें उनका क्या मोल हैं ? तो मैं केहे दू की वो तो अनमोल हैं

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